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लोकसभा और राज्यसभा में क्या अंतर है?
परिचय :
हमारा भारत देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जिसे चलाने के लिए दो संसद बनाई गई है। एक लोकसभा और दूसरी राजसभा। अंग्रेजी में lower House and Upper House भी कह सकते हैं। ज्यादातर लोग इन्हें एक ही समझते हैं। परंतु इन दोनों में काम करने के तरीके, अधिकार, कार्यकाल तथा सदस्यों को चुनने की प्रक्रिया बिल्कुल भिन्न भिन्न है।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको पूरे विस्तार के साथ समझाएंगे कि लोकतंत्र के इन दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में क्या अंतर है और इनसे जुड़ी हुई तमाम जानकारियां भी आपसे समझा करेंगे जिसे इस देश के प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक को जरूर समझना चाहिए। चलिए समझते हैं विस्तार से….

लोकसभा क्या है :
लोकसभा भारतीय संसद का निम्र सदन होता है जहां भारत के नागरिकों द्वारा चुनावी प्रक्रिया के बाद चुने गए प्रतिनिधियों को भेजा जाता है अर्थात जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का एक सदन। वर्तमान में इस सदन में सदस्यों की संख्या कुल 543 है जबकि इसमें अधिकतम सदस्यों की संख्या 552 तक हो सकती है। लोकसभा का गठन हर 5 साल के कार्यकाल के बाद किया जाता है जिसके लिए एक साथ पूरे भारत में चुनाव कराए जाते हैं जिसमें भारत की जनता अपने मत का इस्तेमाल करके अपने पसंदीदा नेता को लोकसभा सदस्य के रूप में चुन पाती है। जिस भी राजनीतिक पार्टी के सदस्यों की कुल संख्या अधिक होती है उसी पार्टी की सरकार बनाई जाती है या कहें तो प्रधानमंत्री की नियुक्ति लोकसभा द्वारा ही की जाती है।
राज्यसभा की जानकारी :
यह भारतीय संसद का उच्च सदन होता है जिसमें राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के सदस्य प्रतिनिधत्व करते है। राज्यसभा में सदस्यों की कुल संख्या 245 होती है। इन सदस्यों में 233 सदस्यों का चयन राज्यों अथवा प्रदेशों की विधानसभाओं द्वारा किया जाता है जबकि इनमें 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नामित या प्रतावित किया जाता है। राज्यसभा सदस्यों का कार्य कला,साहित्य,विज्ञान आदि क्षेत्रों में अधिकतम होता है। राज्यसभा देश का ऐसा सदन है जिसे कभी भंग नहीं किया जा सकता। यह सदन कोई भी नया कानून बनाने की प्रक्रिया में भी शामिल होता है। कोई भी कानून या बिल पहले निम्र सदन यानी लोकसभा में पारित किया जाता है और आखिर में राज्यसभा से मंजूरी मिलने के बाद ही इन्हें लागू किया जाता है।
“अगर आप जानना चाहते हैं कि राज्यसभा के सदस्य कैसे चुने जाते हैं, तो हमारा अगला आर्टिकल ज़रूर पढ़ें।”https://nbtexpress.com/rajya-sabha-member-election-process

स्थापना (लोकसभा और राज्यसभा ):
सन् 1946 में जब ब्रिटिश राज द्वारा भारत को स्वतंत्र करने की तैयारी शुरू की तब उसी समय एक संविधान सभा का गठन किया गया जिसका मुख्य कार्य आजाद भारत को एक मजबूत संविधान देना था। इसी संविधान सभा में सदन बनाने को लेकर बहस शुरू हो गई। कुछ सभा सदस्यों का मानना था कि केवल एक ही सदन होना चाहिए जबकि कुछ का मानना था कि अगर नए भारत को स्थापित एवं संतुलन देना है तो दूसरा सदन होना भी अनिवार्य है।
काफी तर्क वितर्क के बाद सहमति बनी कि भारत के दो सदन होंगे। एक लोकसभा जिसमें आम जनता द्वारा चुने गए सदस्य प्रतिनिधत्व करेंगे और दूसरी राज्यसभा जो राज्यों की जरूरतों को सदन में लाएगी।
इसके बाद 17 अप्रैल 1952 को लोकसभा तथा 13 मई 1952 को राज्यसभा का पहला सत्र शुरू हुआ। दोनों सदनों की भूमिकाओं एवं कार्य शक्ति की बात करें तो इनमें लोकसभा को शक्तिशाली माना जाता है। क्योंकि लोकसभा द्वारा ही सरकार को बनाए रखा जा सकता है या फिर गिराया जा सकता है। जबकि राज्यसभा केवल एक सलाहकार की भूमिका ही निभाती है।
वित्त विधेयक की बात करें तो लोकसभा में इसे प्रस्तुत एवं पारित किया जा सकता है। राज्यसभा इस विधेयक पर केवल अपनी राय ही पेश कर सकती है।
निष्कर्ष :
लोकसभा और राज्यसभा भारतीय लोकतंत्र के दो मजबूत स्तंभ है। जहां एक में (लोकसभा) जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता की आवाज़ को उठते है। वहीं दूसरी तरफ (राज्यसभा) सदन के सदस्य अपने अनुभवों से राज्यों के हितों की आवाज़ बुलंद करते है।