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लुधियाना राज्यसभा सीट : केजरीवाल का राज्यसभा ना जाने का बयान कितना सच कितना झूठ

सुनील कुकरेती,जालंधर : देश के पांच राज्यों में हुए उपचुनाव में दो के नतीजों में आम आदमी पार्टी की जीत हुई। इससे जहां पार्टी वर्करों का मनोबल बढ़ा नजर तो आया है। पर इससे भी ज्यादा पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए यह एक संजीवनी बूटी की तरह काम कर गया।भले ही इन दो राज्यों गुजरात और पंजाब में पार्टी ने एक एक सीट जीती हो पर केजरीवाल के लिए पंजाब की लुधियाना पश्चिम की सीट सबसे एहम थी। क्योंकि यह सीट संजीव अरोड़ा के जीतने के बाद उनका अब पंजाब विधानसभा का विधायक बनने के बाद अपनी राज्यसभा सीट से इस्तीफा देना होगा जिसके बाद यह सीट खाली हो जाएगी। अब केजरीवाल जिनका राजनीतिक रसूख जो दिल्ली हारने के बाद खत्म होता दिख रहा था उसे वापिस लाने के लिए यही राज्यसभा की सीट मात्र एक विकल्प है। कल एक बयान में केजरीवाल का राज्यसभा जाने से इनकार करना इसके सही मायने यही है कि वे ही राज्यसभा जाएंगे। ना जाने वाला बयान तो मात्र एक राजनीतिक छलावा मात्र है।

उनके इंकार वाले बयान के बाद उनका कहना कि किसे भेजना है उसका फैसला आम आदमी पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी ( PAC ) तय करेगी। सभी जानते है केजरीवाल की पार्टी में उनके अलावा किसी ओर की कहां चलती है और अगर उनकी कमेटी केजरीवाल के नाम को ही आगे की दे तो क्या केजरीवाल उसे मना कर सकेंगे।यहीं तो राजनीति है खुद ना कह कर दूसरों से कहलवाना।

राजनीतिक रिकॉर्ड :

केजरीवाल के बयान को सच भी मन ले तो सभी को उनके स्वभाव,उनकी घोषणाओं के बारे में तो भली भांति पता है। राजनीति के शुरुआती दौर में उनकी घोषणा सरकार बनेगी तो वीआईपी कल्चर खत्म कर देंगे।सरकारी बंगलों को नहीं लेंगे या फिर सुरक्षा नहीं लेंगे आम आदमी की तरह आम लोगों के बीच में रहकर सरकार चलाएंगे। भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देंगे। कांग्रेस के साथ कभी गठबंधन नहीं करेंगे बल्कि भ्रष्टाचार में लिप्त कांग्रेसियों को जेल करा देंगे आदि कई बड़ी बड़ी घोषणाएं राजनीतिक मंजन से बयान। सभी ने इन घोषणाओं,बयानों के नतीजे भी देख लिए। उन्होंने जिन कामों को नहीं करने को कहा वही काम किए। इससे क्यों नहीं कोई समझ सकता कि उनके राज्यसभा ना जाने के बयान का असल में मतलब क्या है। इसका मतलब साफ है कि उनकी ना में ही उनकी हां है जो आने वाले कुछ ही समय में स्पष्ट रूप से जनता के सामने होगा।

क्यों डटे हैं पंजाब में और लुधियाना में ही फोकस क्यों ?

लुधियान उपचनाव की बात करें तो सारी ताकत झोंक दी इस चुनाव के लिए। सबसे पहला सवाल इस सीट के लिए संजीव अरोड़ा ही को क्यों चुना गया जबकि पार्टी में दावेदारों की कोई कमी नहीं थी। सबसे पहला हक तो पार्टी के इस सीट से दिवंगत हुए विधायक के परिजनों का बनता था,खासकर उनकी धर्मपत्नी का। फिर संजीव अरोड़ा जो राज्यसभा सांसद हैं उन्हें लाने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी। अगर लाया गया तो सूत्रों के मुताबिक उन्हें किसी कमिटमेंट से लाया गया जिसका जिक्र बार बार चुनावी प्रचारों में भी किया गया कि जीतने पर उन्हें पंजाब कैबिनेट में बतौर मंत्री जगह दी जाएगी। इसके मायने तो यही है कि कोई और राज्यसभा जाने का इच्छुक है जिसे राजनीति में वीआईपी बन कर रहने की लालसा है और शायद उसके वजूद का भी सवाल बना हो। हो सकता है राज एटिक करियर खत्म होता दिख रहा हो।

किसानों के खिलाफ कार्रवाई कर उद्योगपतियों को खुश किया…..

जब भारत में किसान आंदोलन शुरू हुआ था उस समय यही केजरीवाल सब कुछ छोड़कर किसानों के साथ खड़े रहे। क्या क्या रस्ते नहीं अपनाए गए किसानों को खुश करने के लिए। अब वहीं केजरीवाल और आम आदमी पार्टी लुधियाना चुनाव देख कर पलट गए। उद्योगपतियों को खुश करने के लिए किसानों के चल रहे धरने प्रदर्शन को जबरन रुकवा कर उनके मोर्चे ध्वस्त करके उन्हीं को अपने खिलाफ खड़ा कर लिया और उसके बाद तो पंजाब में खुद का पक्का डेरा लगा लिया। कारण सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ।

राज्यसभा सीट किसका फायदा किसका नुकसान…..

राजसभा सीट खाली होने से आम आदमी पार्टी के दिल्ली नेतृत्व को फायदा तो है पर सबसे अधिक किसको। पंजाब में इस समय दिल्ली के नेता ही सक्रिय है जिनमें अरविंद केजरीवाल,मनीष सिसोदिया तथा सतेंद्र जैन शामिल है। इन तीनों में से किसके जाने से पार्टी को फायदा होता है इसे राजनीतिक लोग तो भली भांति समझ लेंगे परंतु आम जनता को भी इसके बारे में समझना होगा कि आखिरकार इस सीट पाने से किनका फायदा होगा और छोड़ कर क्या संजीव अरोड़ा को फायदा हुआ या नुकसान।

               संजीव अरोड़ा की बात करें तो अभी की परिस्थितियों में 2027 में पंजाब विधानसभा के लिए चुनाव होंगे। बचा समय कितना रह गया है जिसमें अरोड़ा मंत्री पद पर रहेंगे। चुनावों के बाद सरकार किसकी बनेगी इसका अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है। वहीं राज्यसभा सीट की बात करें तो संजीव अरोड़ा 2022 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। इसके हिसाब से करीब तीन वर्ष यानी अप्रैल 2028 तक का कार्यकाल उनका अभी बचा हुआ था जबकि पंजाब विधानसभा के लिए लगभग एक वर्ष मात्र ओर अगर 2027 में आप सरकार दोबारा सत्ता में वापसी नहीं करती तो संजीव अरोड़ा का राजनीतिक सफर कैसा रहेगा ये आने वाले समय पर डिपेंड करता है परंतु जो भी राज्यसभा जाएगा उसके लिए कम से कम तीन वर्ष तो पक्के है ही।

कुल मिलकर देखा जाए तो राज्यसभा में जाने का फायदा सबसे बड़ा अरविंद केजरीवाल का ही है बाकी आने वाले कुछ दिनों में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

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