Highlights
1. परिचय — मर्म और पवित्रता की गूंज
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष श्राद्ध का विशेष महत्व है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से लेकर आश्विन अमावस्या तक का 16 दिन का समय पितरों को समर्पित होता है। इस बार पितृ पक्ष श्राद्ध 7 सितंबर 2025, रविवार से प्रारंभ होकर 21 सितंबर 2025, रविवार को सर्वपितृ अमावस्या तक चलेगा। इस दौरान, हर दिन विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान किए जाते हैं जो परंपरागत रूप से पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करने के लिए किए जाते हैं।
पितृ पक्ष श्राद्ध के अंतर्गत विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और क्रियाएं शामिल होती हैं।
धार्मिक मान्यता है कि इस अवधि में हमारे पूर्वज धरती पर अपने वंशजों के आह्वान पर आते हैं और अपने लिए किए गए तर्पण, पिंडदान और दान-पुण्य को स्वीकार करते हैं। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होकर परिवार को सुख-समृद्धि और संतति के कल्याण का आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि इस समय को “कृतज्ञता का पर्व” भी कहा जाता है। इस अवधि में किया गया हर अनुष्ठान और क्रिया एक विशेष आध्यात्मिक महत्व रखती है, जो हमें हमारे पूर्वजों के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाती है।
2. आत्मा से जुड़ी विधियाँ
पंचबलि: परंपरागत रूप से, भोजन पहले कौवों, गाय, कुत्ते आदि को खिलाना माना जाता है, क्योंकि इनमें से कौवा पितरों का दूत माना जाता है
इस पर्व के दौरान, परिवार के सदस्यों को एकत्रित होकर अपने पूर्वजों की याद में विशेष भोजन और प्रसाद अर्पित करते हैं। यह एक ऐसा समय होता है जब परिवार के सभी सदस्य एकता के साथ मिलकर अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
तर्पण: जल में काले तिल और कुशा डालकर पूर्वजों को अर्पण करना। यह सरल लेकिन गहरा अनुष्ठान पवित्र आत्मिक संबंध को प्रकट करता है
इन 16 दिनों के दौरान, श्रद्धालु अपने परिवार के दिवंगत सदस्यों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिससे उनके आत्मा को शांति मिल सके।
पिंडदान: घी और तिल से बने पिंड पूर्वजों की आत्मा को भोजन और पोषण प्रदान करने का प्रतीक है Indiatimes।
दान-पुण्य: जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, या अन्य सामग्री दान करना श्राद्ध की पुण्य को और बढ़ाता है, इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है Navbharat TimesIndiatimes।
3.पवित्र अनुशासन और संयम
पितृ पक्ष में संयम और सात्विक जीवन का पालन आवश्यक है। इस समय:
मांसाहार, लहसुन, प्याज, मदिरा व तामसी भोजन से परहेज करें
गुस्सा, विवाद, और अशुद्धता से दूर रहें
बाल-नाखून काटना, नए कार्य का शुभारंभ आदि वर्जित हैं
2025 में श्राद्ध तिथियाँ (पितृ पक्ष की पूरी कालावधि: 7 सितंबर – 21 सितंबर)
नीचे एक सारणी में श्राद्ध तिथियों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया गया है:
तिथि (DD-MM-YYYY) | तिथि का नाम / श्राद्ध |
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07-09-2025 (रविवार) | पूर्णिमा श्राद्ध |
08-09-2025 (सोमवार) | प्रतिपदा श्राद्ध |
09-09-2025 (मंगलवार) | द्वितीया श्राद्ध |
10-09-2025 (बुधवार) | तृतीया तथा चतुर्थी श्राद्ध |
11-09-2025 (गुरुवार) | पंचमी (भरणी श्राद्ध) |
12-09-2025 (शुक्रवार) | षष्ठी श्राद्ध |
13-09-2025 (शनिवार) | सप्तमी श्राद्ध |
14-09-2025 (रविवार) | अष्टमी श्राद्ध |
15-09-2025 (सोमवार) | नवमी श्राद्ध |
16-09-2025 (मंगलवार) | दशमी श्राद्ध |
17-09-2025 (बुधवार) | एकादशी श्राद्ध |
18-09-2025 (गुरुवार) | द्वादशी श्राद्ध |
19-09-2025 (शुक्रवार) | त्रयोदशी (और मघा) श्राद्ध |
20-09-2025 (शनिवार) | चतुर्दशी श्राद्ध |
21-09-2025 (रविवार) | सर्वपितृ अमावस्या (महालय अमावस्या) श्राद्ध |
निष्कर्ष
पितृ पक्ष हमें यह स्मरण कराता है कि हमारी जीवन यात्रा केवल हमारे कर्मों का परिणाम नहीं है, बल्कि उसमें हमारे पूर्वजों का योगदान भी गहराई से जुड़ा है। उनके प्रति सम्मान, कृतज्ञता और श्रद्धा प्रकट करने का सबसे श्रेष्ठ अवसर यही है। इस अवधि में किए गए श्राद्ध कर्म, दान-पुण्य और तर्पण केवल पितरों को तृप्त नहीं करते, बल्कि हमारे जीवन से भी नकारात्मकता को दूर कर, सौभाग्य और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।साथ ही, यह भी जरूरी है कि इस समय के दौरान हम अपने व्यक्तिगत जीवन में सुधार और विकास के लिए संकल्प लें, ताकि हम अपने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा को कार्यों के माध्यम से व्यक्त कर सकें।
अंत में, पितृ पक्ष श्राद्ध का महत्व केवल धार्मिक कृत्यों में नहीं, बल्कि हमारे जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा को पुनः स्थापित करने में भी है।